मोबाइल की लत
मोबाइल की लत
एक छोटा सा मोबाइल आज रिश्तों पे पड़ रहा है भारी।
इंसान खुद ही अपनों से दूर होने की कर रहा है तैयारी।।
प्यार की मीठी बातें रह गई हैं, चंद लफ्जों में सिमटकर।
फेसबुक, व्हाट्सएप पर ढूंँढ रही है दुनिया दोस्ती यारी।।
आपसी रिश्तों का टच तो मोबाइल टच बनकर रह गया।
बदल गए मायने रिश्तो के, बदल गई है ये दुनिया सारी।।
अपनों को छोड़ अनजानो में, अपनापन ढूंढ रहा इंसान।
सच्चे रिश्ते हो रहे हैं ब्लॉक दिखावे की है ये दुनियादारी।।
प्यार मोहब्बत की बातें, किया करते हैं इमोजी भेजकर।
रिश्तों की परिभाषा ही है अब मोबाइल की चारदीवारी।।
जीवन का बहुमूल्य समय, मोबाइल में कर रहे हैं बर्बाद।
और अपनों को हैं कहते फिरते, व्यस्त है लाइफ हमारी।।
आमने सामने बैठ कर भी एक दूजे से अनजान हैं बनते।
कुछ और नहीं, वास्तविक जीवन भूलने की है ये तैयारी।।
जज़्बात, एहसास सब कैद हो चुके हैं, मोबाइल के हाथ।
मोबाइल की लत ऐसी कि, बन चुकी है अब ये बीमारी।।
