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Meena Mallavarapu

Tragedy

4  

Meena Mallavarapu

Tragedy

गलते नासूर

गलते नासूर

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गलते नासूर...

  देख नहीं पाती इन आंखों से

       इस गलते नासूर को -

  इस रिसते,चीखते नासूर को-

 नहीं,नहीं-चीख नासूर की नहीं

             मेरी ही है..

  कैसी दुनिया में आ गए हैं हम

     इंसानों की जहां कद्र नहीं

लहू देह में नहीं ,सड़क पर है बहता

   भड़क उठते सब एक दूजे पर

        जैसे हों ज्वालामुखी

       हर उद्गार जैसे बैठा हो

          अंगारों के ढेर पर ..

  कौन जाने किस पल धधक उठे

          आंसू छू नहीं पाते,

  हाहाकार ,आर्तनाद कम हैं पड़ते

        विंह्वल,व्यथित मन की

       करुण गाथ

ा न सुने कोई!

   हम सब को अपनी अपनी जान

   अपने ऐशो आराम के सिवाय

        नज़र नहीं कुछ आता..

  आंकड़े आंखों के आगे हैं नाचते

      जब तक उनमें हम नहीं

           कोई बात नहीं!!!

  हृदय विदारक चीख़ें सुन सुन कर

       पथरा गया है यह दिल

और वह एक छोटा सा तिनका सम हिस्सा

     जो अब तक पथराया नहीं..

बन गया ज़ख़्म -वही ज़ख़्म बना नासूर

    आज भरता नहीं,सूखता नहीं

गल गल कर सारे शरीर में फैलने पर है तुला..

  दर्द और चीख की बारी है अब मेरी..

 नैसर्गिक न्याय नहीं छोड़ेगा तुझे मुझे

   प्रकृति बरस पड़ेगी हम सब पर

        कर रहे हम शर्मिंदा उसे..

  ज़ख्मी हैं गर आज-अचम्भा कैसा!



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