सपुर्द ए खाक
सपुर्द ए खाक
जाने वो कैसा दिन होगा
कैसा मौसम होगा
कैसे हालात होंगे
जिस दिन हम सपुर्द ए खाक होंगे
सुबह होगी शाम होगी या रात होगी
इतना तो तय है
हर जुबां पे मेरी बात होगी
जिन्दगी का अन्तिम सफ़र जब शुरू होगा
सारी दुनिया मेरे साथ होगी
मैं अपनी खतायें साथ ले चला
हो सके तो माफ कर देना
अब फिर ना कभी मुलाकात होगी
खुले आसमां तले वीरान तनहाइयों में अब है बसेरा
कभी चमकेगा सूरज
कभी ढक लेंगे सूखे पत्ते
कभी कब्र पे मेरी बरसात होगी
अपनो से दूर बेगानों के बीच अब रहना है सदा
हर दिन हिज्र का अब
हर रात हिज्र की रात होगी
शायद कोई आये
दो फूल चढ़ाये
और फातिहा पढ़े
तारीख़ ए इन्तकाल गर किसी को याद होगी।