यादों के चिराग
यादों के चिराग
छोड़कर मुझे अकेला
कहीं और जाना चाहती हो तुम
रुक जाओ, कौन होता हूं मैं यह कहने वाला
जितना मैं कर सकता था
उतना प्यार किया मैंने तुमको
तुम्हें लगता है शायद यह काफ़ी न था
मगर यहां मैं भी मजबूर हूं
जितना किया उससे ज्यादा आता ना था
लौट आओ तुम्हारी मर्जी, ना लौटो तुम्हारी मर्जी
पता होता अगर ऐसा पल आएगा
तो तुम्हारी जिंदगी में कभी ना आता
जो हुआ सो हुआ, आंसू बहाने से क्या फायदा
तुम्हारी कुछ भूली बिसरी यादें
आज भी जिंदा है मेरी इन आंखों में
चाहे तो जाने से पहले
आंचल में बांध कर इनको भी ले जा सकती हो
मेरा क्या, लौट आऊंगा फिर से
अपनी वही पुरानी जिंदगी में
जहां न तुम थी ना तुम्हारी यादें और ना ही यह पल
मेरी यादों के कुछ चिराग
जला रखे थे जो तुमने अपनी पलकों में
हो सके तो उनको बुझा देना मुझे भुला कर
