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Laxmi Tyagi

Tragedy

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Laxmi Tyagi

Tragedy

अजनबी रिश्ते

अजनबी रिश्ते

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भूल जाते हैं ,अपने उन पांव के छालों को ,

भूल जाते हैं ,अपनी धूल भरी राहों को।

भुला देते हैं ,प्यार भरे अपने ,रिश्तों को। 

भूल जाते हैं , उन घूमावदार सोपानों को।


 भूल जाते हैं ,कभी थामकर चलना सिखाया था ,उन हाथों को ,

भूल जाते हैं ,वो सहारे जिनसे आत्मिक और प्रेम का लगाव था।

भूल जाते हैं ,कभी थामी थी, वह सीढ़ी ! जो मंजिल तक ले गई।

भूल जाते हैं ,वो रिश्ते ! जिन्होंने हर पल थामा, उसका हाथ था। 


भूल जाते हैं ,उनके त्याग को, दिखलाते हैं ,उन छालों के निशाँ।

जो अपने कन्धों का सहारा दे ,ऊंचाई का रस्ता दिखला गया। 

भूल जाते हैं ,सोपान की पहली सीढ़ी का वो ,पहला पग !

न जाने वो रिश्ता कब ,कहाँ और किधर खो गया ?

अज़नबियों की भीड़ में ,अपने ही रिश्तों को भुला दिया।

जो रिश्ते कभी अपने थे ,न जाने उनका दर्द कहाँ गया ?

कभी थी, जिनकी छाया ,उन रिश्तों को ही अज़नबी बना दिया।

समीप रहकर भी दूर नजर आते हैं ,

आज अपने वही रिश्ते ,''अज़नबी ''नजर आते हैं।  



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