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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy

मिलन की आस

मिलन की आस

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खता आंखों ने की और दिल सजा पा रहा है 

मोहब्बत के आलम में बड़ा मज़ा आ रहा है 

चेहरे की चमक ने बयां कर दिया हाल ए दिल

उसका नाम होंठों पे न चाहते हुए भी आ रहा है 

आग इधर लगी है तो धुंआ उधर भी होगा 

मेरी वफाओं का तुझपे कुछ असर भी होगा 

हवा की नमी ने खोल दिये तेरे आंसुओं के राज 

इश्क ने चोट इधर खाई है तो दर्द उधर भी होगा 

जिस्म मिले ना मिले दिल तो अपने मिले हैं 

खत्म ना होंगे कभी मोहब्बत के सिलसिले हैं 

तेरी रुसवाई ना हो इसीलिए होंठ मेरे सिले हैं 

प्रेम के इस सफर में गमों के बड़े काफिले हैं 

रोज सूरज डूबता है रोज खाली रात आती है 

होंठों पे जब भी आती है बस तेरी बात आती है 

दिल के कोने में "मिलन की आस" का दीया जला है 

तू आये या ना आये पर तेरी याद जरूर आती है।



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