अनमोल तोहफा
अनमोल तोहफा
उस दिन जब पहली बार मेरी लिखी कहानी विजेता बनी थी,
सच में अपनी पहली कमाई मिलने की
खुशी बहुत ही बड़ी थी।
उसी महीने जन्मदिन था पतिदेव का
तो उनको तोहफा देने की मुझे जल्दी पड़ी थी।
यूं तो मैं अपनी बचत के पैसों से हरबार
उनको कुछ देती थी,
पर "क्या फर्क पड़ता है पैसे मैं दूं या तुम दो"
उनकी कही ये बात मन को भेदती थी।
पर उस दिन जब मैने अपने पर्स से बिल चुकाया,
पतिदेव के चेहरे पर एक अलग ही नूर पाया।
तब खुश होकर तोहफा सीने से लगा उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया,
"अपनी कमाई के पैसे खर्च किए बिना मिले तोहफे का
एक अलग ही मोल होता है।
उस पर वो तोहफा बीबी के हुनर की कमाई का हो तो फिर तो वो अनमोल होता है।