आखिरकार वो बादल ...
आखिरकार वो बादल ...
आखिरकर वह बादल आज बरस गया दिल खोल कर ...
हर बार उसकी परतों ने था उसको रोका ..
लेकिन आज उसको मिल ही गया एक मौका ..
वह बरसा था यूं सोच कर कुछ ठंडी हवा सा देगा ..
इसकी आशंका उसको भी न थी की कुछ ऐसी तबाही देखेगा ...
आखिरकार वह बादल आज बरस गया दिल खोल कर...
खुद को रोक कर वह बर्फ जैसा जमा था ..
लेकिन आज बरस कर वो भाप जैसा उबला है ..
वह बरसा था सिर्फ उन दो आंखों को भिगोने को .
इस ख्वाब से भी दूर था कि बीच मझधार वह डुबो देगा ...
आखिरकार वो बादल आज बरस ही गया दिल खोलकर ...
हर बार वो बरसता था फिर खुद ठहर जाता था ..
इस बार जो वो बरसा है एक पल ठहरने को भी तरसा है . . .
दुखी वो भी है यह सोच कर कि कैसा सैलाब वो ले आया है ...
लेकिन खुशी है इस बात की कई वर्षों का सुख उसने मिटाया है ...
कई दिलों में फिर से जीने की आस जगाई है . . .
आखिरकार वो बादल आज बरस गया दिल खोलकर ...