चाह औरों की तरह रंगों की,,,,
चाह औरों की तरह रंगों की,,,,
चाह औरों की तरह रंगों की अपनी भी रही।
हो गया बे- रंग जीवन तो बताओ क्या करें।
एक गुलाबी रंग गालों पर तेरे सजता रहा।
पर तुम्हें छू भी ना पाए तो बताओ क्या करें।
चाह तो मेरी भी थी की मंजिले कदमों में हो।
गर अधूरा है सफर तो तुम बताओ क्या करें।
बहुत सपने हमसफर हमराज देखे थे मैंने भी।
साथ तुम दे ना सके तो अब बताओ क्या करें।
यूं तो गिर के संभल जाने की है फितरत मेरी।
कर दगा अपने ही गिराएं तो बताओ क्या करें।
लोग दें गाली मुझे फिर ,जो चाहे वह कहते रहें।
जब तंज अपने ही कसें तो बताओ क्या करें।
ना मेरी है आरजू कि उड़ जाऊं छू लूं आसमान।
पर स्वप्न ही जब टूट जाए तो बताओ क्या करें।
वो नदी मंजर सुहाना और हम खड़े अब भी वहीं
तुम मगर अब भी ना आओ तो बताओ क्या करें।

