रूख़ से नक़ाब हटा तो (ग़ज़ल)
रूख़ से नक़ाब हटा तो (ग़ज़ल)
रूठे दिल को मनाने में बड़ी परेशानी हुई।
तैरना चाहा हमने जब भी दरिया तूफानी हुई।
रुख़ से नकाब हटा तो जलवा सामानी हुई।
तरसती निगाहों पर ज़रा सी मेहरबानी हुई।
आईना तोड़ कर सीखी हूं टूटना इसलिए,
हर टुकड़े में तुम्हें देखने में आसानी हुई।
इश्क कोई सौदा तो नहीं है कि हिसाब रखूं,
उनसे मिल कर क्या लाभ, क्या हानि हुई।
नब्ज़ देखते ही कह दिया हकीम भी अब तो,
लाइलाज है यह मर्ज़ साहब, बहुत पुरानी हुई।
टहनी टूटी आशियां वाली उस रोज आंधी में,
इश्क अधूरा है 'दीप' अधूरी प्रेम कहानी हुई।