माहिया
माहिया
चुप-चुप से क्यूं बैठें
कुछ ना बोलो तो
लगता है ज्यूं ऐंठे
जब जब वो आता है
उससे मिलकर के
तन मन खिल जाता है
कलियां भी शर्माए
मेघ गरज जाते
जब जब तूं मुस्काए
मिलने को जी चाहे
तरस रही पल पल
नैना देखें राहें
जिद करता है कँगना।
मैं तो बाजूँगा,
आएं जब वो अँगना।।
साजन संग रहना है।
महक उठूंगा मैं,
गजरे का कहना है।।
पनघट पर आ जाना
सीने से बलिए
आकर के लग जाना
कर लेंगे कुछ बातें
अपने तन मन की
आएगी जब रातें
मानो मेरी बातें
जब भी बोलूं तो
लाना तुम सौगातें
देखेगी जब सखियां
तो झुक जाएंगी
शर्मीली ये अखियां
चुप चुप सी रहती हूं
फिर भी मैं साथी
तुझमें ही बहती हूं
जब हम करेंगे बतियां
छेड़ेगी फिर सखियाँ।