गृहणी हूँ ।
लपक कर गले लगाया मैंने निश्छल मुस्कान आई घरद्वार। लपक कर गले लगाया मैंने निश्छल मुस्कान आई घरद्वार।
जब हम करेंगे बतियां छेड़ेगी फिर सखियाँ। जब हम करेंगे बतियां छेड़ेगी फिर सखियाँ।
देव तुल्य चिकित्सक सारे वो हर रोग से सबको तारे! देव तुल्य चिकित्सक सारे वो हर रोग से सबको तारे!
फिर भूल जाते हैं रोजमर्रा के कामों में जुट जाते हैं। फिर भूल जाते हैं रोजमर्रा के कामों में जुट जाते हैं।
वो भी कुछ कम नही बावली सी है बावली हो मेरे बदन को चूमती वो पेड़ो के इर्द-गिर्द फेरे लगाती मैं... वो भी कुछ कम नही बावली सी है बावली हो मेरे बदन को चूमती वो पेड़ो के इर्द-...
सागर में मोती-सी है तू गहरी इतने उतरने का मुझमें दम तो नहीं... सागर में मोती-सी है तू गहरी इतने उतरने का मुझमें दम तो नहीं...
शान मे किसी की बिछता जी बेचारा श्रेय सारा हमको मिल जाता संस्कारी का वाह अपनी भी किस्मत क्या कमाल ह... शान मे किसी की बिछता जी बेचारा श्रेय सारा हमको मिल जाता संस्कारी का वाह अपनी भ...
आखिर इनका ही तो घर है साथी है ये मेरे अकेले पन के आखिर इनका ही तो घर है साथी है ये मेरे अकेले पन के
झिलमिलाता अंम्बर सा कभी लगे अनमना सा। झिलमिलाता अंम्बर सा कभी लगे अनमना सा।
परिणय सूत्र परिणय सूत्र