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ख्वाब

ख्वाब

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मेरा मन ख्वाबो का शहर है

कोई सपना कभी भी आ जाए


कोई ना अब मुझे डर है

रोकूं भी तो क्यों रोकूं,


आखिर इनका ही तो घर है

साथी है ये मेरे अकेले पन के


देते है साथ चाहे कोई भी पहर है ।

एहसास भी जगाते है मन की बघियाँ मे


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