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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Romance

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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Romance

तसव्वुर-ए-सनम

तसव्वुर-ए-सनम

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बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222

निगाहें यूँ मिली तुमसे, ये मेरा दिल हुआ घायल,

तिरे आने की आहट हो, जो छनके पाँव में पायल।


ब-चश्म-ए-तर जो बह जाए, कभी मेरी ये आँखों से,

मैं रोते मुस्कुरा दूँ, अश्क़ जो पोंछे तिरा आँचल।


छलक जाए मिरा पैमाना-ए-दिल देखकर तेरी

झुकी मख़मूर आँखें और, उनमें ये हसीं काजल।


अदा क़ातिल,  नूर-ए-रुक्सार इतनी कम क़यामत है!

कि अब शीरीं तिरी आवाज़, कर जाती मुझे कायल।


हो तुम मेरी तसव्वुर-ए-सनम ऐ मेरी महबूबा

हो नग्मा, नज़्म हो या फ़िर किसी शायर की हो तुम ग़ज़ल।

9th July 2021/ Poem 28


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