गज़ल
गज़ल
तेरी महफिल में तेरे इश्क़ के नशे में, चूर है यह मजनू
संभालूँ अब मैं किस-किस को, खुद ना संभल सके यह मजनू
अगर तन से ना मिल सका तो, मन से ही सही हो मुमकिन
मिलने की तुझसे यह लगन, तेरे पास होने का एहसास रखता यह मजनू
तेरी नूरानी सूरत को जो भी ,एक झलक पाने को है आतुर
मिट जाती जन्मों-जन्मों की तपन, तन- मन हाजिर करता यह मजनू
जिस किसी को भी तेरे प्रेम की, आग लगी दिल में
नामुमकिन है यह बुझाने से भी नहीं बुझती, दीवानगी में डूबा यह मजनू
क्या रिश्ता है जब पूछा ,इस मजनू ने, अपने तड़पते हुए दिल से
उसका दिल मेरा है ,धड़कता दिल उसका, सदा सुनता यह मजनू
तरीके तो हजारों है पिलाने के ,मुहब्बत-ए-पैमाना
मगर तेरे पिलाने के तरीके का, हुनर का दीवाना है यह मजनू
जो पिलाया जाम, इस नाचीज "नीरज" को मुहब्बत से तुमने
तेरी इस मासूमियत को क्या नाम दूँ, मर मिटने को तैयार है यह मजनू!