प्रेम दीवानी राधा
प्रेम दीवानी राधा
ओ कान्हा !
आखिर क्यों छोड़ गए अपनी राधेजू को..
कैसे बताऊं क्या गुजरी मेरी कान्हामयी रूह को,
बिन तेरे नही लगता है अब, ये बावरा सा हुआ मन मेरा,
जन्म जन्म का नाता जो जुडा है तुमसे, तेरे बिना नही कोई मोरा।
कह कर गए नही रोने को, कैसे किया आँखों पर काबू,
भर लिया आँखों में ही नीर, बह जाते तो जमना भी हो जाती बेकाबू।
राह तकती हूँ पल पल अब तो , जाने कब हो जाए दीदार तेरा,
सुध बुध तो अपनी गंवा ही चुकी हूँ, दिल और रूह पर भी हक़ बस तेरा।
चैन और सुकून भी वारा तुझ पर, लगन लगी बस तेरे दर्श की,
तुझमें ही खोकर, तुझे ही पा जाऊँ
, बस यही आस है इन नैनन की।
पल पल बाँट निहार रही तुम्हारी राधा, अब विरह सहा ना जाए,
कोई सन्देशा दो कान्हा को, वो दौड़े राधा के पास आ जाएँ।
दूर हो फिर भी पास हो दिल के, कैसा है ये जादू तेरा कान्हा,
कह भी न पाऊं, सह भी ना पाऊं कैसा है ये प्रेम राधा का।
मैं चलूँ बस उसी राह पर अब,, जहाँ जहाँ रहेगा बसेरा तेरा,
तुम बिन नहीं रात चांदनी, नहीं है उजला कोई मेरा सवेरा।
अनंत प्रेम में बंध गयी हूँ तुझसे, नहीं भाता है जग का फेरा,
तुझसे ही बिखरु और तुमसे ही निखरु, कुछ ऐसा ही हो अंत ये मेरा...
कुछ ऐसा ही हो अंत ये मेरा... तुम्हारी राधेजू...