रुकना नहीं चाहती हूँ
रुकना नहीं चाहती हूँ
मैं पंछियों की तरह बन कर हवा में उड़ना चाहती हूँ,
मेघा बन कर आसमान में बरसना चाहती हूँ,
मैं कविता में अपने अलफाजों को पिरोना चाहती हूँ,
मैं खुली किताब सा अपना जीवन जीना चाहती हूँ।
किसी भी हाल में बस रुकना नहीं चाहती हूँ।
मैं चाँद की चांदनी सी चमकना चाहती हूँ,
सूरज की रोशनी सी दमकना चाहती हूँ तो,
तारो सी चमकना चाहती हूँ।
किसी भी हाल में बस रुकना नहीं चाहती हूँ।
मैं फूलो सी बन कर हर जगह खूशबु फैलाना चाहती हूँ,
लोगों की मुस्कुराहट को अमृत मान कर पीना चाहती हूँ,
छू न पाए किसी को गम की आंधी, ऐसी तमन्ना चाहती हूँ,
गम हो या ख़ुशी, हँस कर गले लगाने चाहती हूँ,
किसी भी हाल में बस रुकना नहीं चाहती हूँ।
मैं हिरणी की तरह दौड़ना चाहती हूँ,
तो मोरनी की तरह नाचना चाहती हूँ,
कोयल सी गाना चाहती हूँ तो,
पपीहा बन तरसना चाहती हूँ,
किसी भी हाल में बस रुकना नहीं चाहती हूँ।
मैं आग बनकर जलना चाहती हूँ,
हर सांस की धड़कन पर चलना चाहती हूँ,
दरिया बन कर तैरना चाहती हूँ,
खुले आसमान को ओढ़ना चाहती हूँ,
किसी भी हाल में बस रुकना नहीं चाहती हूँ।
मैं गिर गिर कर खुद को संभालना चाहती हूँ,
जीवन बन कर जिंदगी को ही जीना चाहती हूँ,
मैं खुदा की जी भर के इबादत करना चाहती हूँ तो,
ब्रह्मांड की नाद को सुनना चाहती हूँ,
किसी भी हाल में बस रुकना नहीं चाहती हूँ।
बस रुकना नहीं चाहती हूँ ।।
