मैं,औ'मेरी कलम
मैं,औ'मेरी कलम
जब तुम ज़िन्दगी में नहीं थे...,
तब,मैं तुम्हारे होने का
आभास लिखा करती थी,
तुम कभी-कहीं तो मिलोगे
ये विश्वास लिखा करती थी,
जब,तुम ज़िन्दगी में आए...,
तब,मैं तुमसे जुड़े अपने सारे
एहसास लिखा करती थी,
दिल छू लेने वाले सभी तुम्हारे
अंदाज लिखा करती थी,
आज तुम ज़िन्दगी में नहीं हो...,
तो,मैं,तुम्हारे बिना बीत रहे
हर मौसम पर एतराज
लिखा करती हूँ,
साथ बिताए हमारे हर लम्हे
की यादों के
साज लिखा करती हूँ,
माना के छोड़ दिया तुमने
मेरा हाथ,
पर,मेरी कलम रहेगी सदा
मेरे साथ,
जो,मुझे तन्हा होने नहीं
देगी,
जो तुम्हें मुझसे खोने नहीं
देगी,
अब,
कलम ही है एकमात्र
सहारा"मेरे लिए"
मैं औ' मेरी कलम,
लिखते रहेंगें,सदा
"तुम्हारे लिए"