फटी जेब
फटी जेब
फटी जेब है और किस्मत हुई बेकार,
क्या करें? अब बदली सरकार,
कुछ सत्ता के भोगियों का, झूठा है प्रचार,
मासूम जनता में, लगा दिया तकरार।
करवटें बदलने से, आदत नहीं बदलती,
तुम लाख बदल लो चेहरे, फितरत नहीं बदलतीं,
आईने में देखकर अपना अक्स, यूं ही इतराया ना करो,
और बिना तरबियत के, हसरत नहीं बदलतीं।
जब वक्त बुरा हो तो, खैरियत पूछीं नहीं जाती,
और फटी जेब से जिल्लत, निकाली नहीं जाती,
तराने बदल भी दे हम, ज़माने को गुनगुनाते हुए,
पर लोगों की नजरों से, गलतफहमियां निकाली नहीं जाती।
चार पैसे कमा कर, तू खुद को बड़ा मानता है,
वह बेदर्द मुसीबतों में अपनों से, हिसाब मांगता है,
वह खंजर-सी काटती जुबानें, न जाने कितने ज़ख
़्म करतीं हैं,
वह दीया अपने ही चरागों से, रोशनी उधार मांगता है।
यहां सियासत की हवस में डूबे, सारे भिखारी है,
यह मीठी ज़ुबान से, अपने जाल में फांसने वाले, मक्कार शिकारी है,
जो अपने फ़ायदे के लिए, ख़ून के रिश्तों को भी, दांव पर लगा सकते हैं,
तो सोचो प्यारे इंसानों, यह कैसे होंगे गद्दार और यह कैसी इनकी गद्दारी है।
लूट तो लिया तुमने सारा देश,
अब क्या लूटेंगे आसमां को,
रहम करो इस कुदरत के निज़ाम पर,
कुछ तो समझो इन, मस्तमौला इंसान को।
झूठी है इनकी शान और कितने हैं इनके ऐब,
इनकी हैवानियत से, खाली हो गया गैब,
क्या करोगे इतनी धोखाधड़ी, लूट और करके फ़रेब,
क्या करोगे इतना कमाकर यारों, कहां कफ़न को भी होती है जेब।