कंगाल रिश्ते
कंगाल रिश्ते
मैंने जिंदगी में कुछ अच्छे पल, संभाल रखें हैं,
अपनों के बीच ही कुछ, गद्दार पाल रखें हैं,
अब हर शख़्स की जुबान में, खोट लगती है,
न जाने क्यों, अब तारीफ़ों से भी चोट लगती है।
यह झूठी मुस्कान से भरा ज़माना भी,
कुछ अज़ीब सा लगता है,
हर फ़रेब से भरा, वह शख़्स भी, करीब-सा
लगता है,
यह तो किरदार है हमारा, खुश मिज़ाज-सा
साहब,
वरना हमने भी, भ्रम का सागर उछाल रखें हैं।
गर मीठा हो गन्ना, तो जड़ से चूसा ना करों,
बिन बुलाए, जज्बातों में यूं ज़ख्म उधेड़ कर,
घुसा ना करो,
यूं ही अटपटी चालाकियों को, अपना हथियार
ना समझो,
वरना हमने भी, आस्तीन का सॉंप निकाल रखें हैं।
क्यों लफ़्ज़ों की दुनिया, दीवानी बन जाती है,
कुछ अनसुनी बातें भी, कहानियॉं बन जाती है,
ये जलन, बड़ी बेतुकी की
चीज़ है साहब,
इस ईर्ष्या सैलाब ने, अच्छे-अच्छों को खंगाल रखें हैं।
अपने कॅंधों को यूं ही बेवजह, उठाया ना करो,
हरगिज़ नज़रों में किसी के, गिर जाया ना करो,
क्यों झॉंकते हो गिरेबान में, दूसरों के नुक्स
निकालने के लिए,
आओ, इस वफ़ा के बाज़ार में, देखो, कितना
कमाल रखें हैं।
तुम आईने में हर वक्त, अपना अक्स देखा करो,
जो चाहें तुम्हें, वह सच्चा शख्स देखा करो,
सिर्फ़ शक से रिश्ते, नहीं है मेरे कामयाब,
क्योंकि, मैंने हर अपनों के , ख़याल रखें हैं।
दो दिन की इस ज़िंदगी को, यूं हँस के बसर कीजिए,
जो भी मिले यारों, उसे अपना समझ लीजिए,
करो कुछ ऐसा कि, हर चेहरे को मुस्कान दीजिए,
करना क्या है, जिंदगी में सही आपको?
इस रंगीले अकबर ने, आपके सामने ये,
कुछ सवाल रखें हैं।