बौनी उड़ान
बौनी उड़ान
मेरी उड़ान में, जाने क्यों खामोशी छा गई,
लगता है मेरे सपनों की, बौनी उड़ान हो गई।
हिमाकत ना करो, हद से गुजर जाने की,
गुस्ताख़ी ना करो सज़ा-ए-उम्र पाने की,
चलो परहेज किया है, दहलीज ना उतरेंगे हम,
खातिर तेरे सुलगते अंगारों से, हंसते निकलेंगे हम,
बड़े बदतमीज होकर भी, बड़ी अज़ीज़ी दिखाते हैं हम,
गर अड़े तो पतंगों को भी, शमां का परवाज़ बनाते हैं हम।
मिलना बिछड़ना तो नसीब की बात है,
बागी होना है, यह तो हालातों की
बात है,
थी ऊंची उड़ान मेरी, पर मैं न जाने कहां खो गई,
चलते-चलते ही मेरे पंखों की, बौनी उड़ान हो गई।
लगता है समय की ही यह अगुवाई है,
दो पल की खुशी और फिर से रुसवाई है,
ये जहां समुंदर गहरा और ये उसकी गहराई है,
बदलते समय की, हवाओं की नई पुरवाई है।
न जाने जिंदगी का कैसा है इम्तिहान,
उड़ा इतना की, छोटा लगा सारा जहान,
थी जिसकी तलाश मुझको, मिला ना वह इत्मीनान,
उड़ा सबसे ऊपर पर फिर भी, लगीं बौनी उड़ान।