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AVINASH KUMAR

Tragedy

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AVINASH KUMAR

Tragedy

अंधेरे अकेले घर में

अंधेरे अकेले घर में

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अँधेरे अकेले घर में

अँधेरी अकेली रात।

तुम हीं से लुक-छिप कर

आज न जाने कितने दिन बाद

तुम से हुई मेरी मुलाक़ात।

वो भी सपनों में आज


और इस अकेले सन्नाटे में

उठती है रह-रह कर

एक टीस-सी अकस्मात‍

कि कहने को तुम्हें इस

इतने घने अकेले में

मेरे पास कुछ भी नहीं है बात।


क्यों नहीं पहले कभी मैं इतना मौन हुआ?

क्यों नहीं प्यार के सुध-भूले क्षणों में

मुझे इस तीखे ज्ञान ने छुआ

कि खो देना तो देना नहीं होता-

भूल जाना और, उत्सर्ग है और बात

कि जब तक वाणी हारी नहीं

और वह हार मैंने अपने में पूरी स्वीकारी नहीं,

अपनी भावना, संवेदना भी वारी नहीं-

तब तक वह प्यार भी

निरा संस्कार है, संस्कारी नहीं।


हाय, कितनी झीनी ओट में

झरते रहे आलोक के सोते अवदात-

और मुझे घेरे रही

अँधेरे अकेले घर में

अँधेरी अकेली रात


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