मैं भ्रमित हूँ
मैं भ्रमित हूँ
मैं भ्रमित हूँ, मैं भ्रमित हूँ, मैं भ्रमित हूँ
सच में क्या मैं एक इंसान हूँ।
रिश्वत नहीं दूंगा बोलकर किया हूँ मैं शपथ
फिर भी दे रहा हूँ मैं रिश्वत होकर भ्रमित।
हर बार कहा है खुद को सच बोलने के लिए
पर हर बार कहता हूँ झूठ आगे बढ़ने के लिए।
"स्वच्छ भारत" के ऊपर लिखकर रचना हुआ था प्रशंसीत
शायद इसलिए ताकि फेंक सकूं कचरा रास्ते पर हमेशा।
हॉल मैं सिनेमा देख कर खुद को सोचता हूँ नायक
पर फिर क्यों बाहर आइना मैं देखता हूँ एक खलनायक।
सरकारी विद्यालय में अच्छा शिक्षा व्यवस्था नहीं है कहूँगा
पर क्यों अच्छा नहीं है उसके बारे में बाद में सोच लूँगा ।
कुत्तों को बेटा समझकररखूँगा मैं घर पे
पर बकरी काट कर खाऊँगा बड़े आराम से।
आखरी में निराश होकर लिखूंगा एक कविता
और अपेक्षा करूंगा अच्छे दिनों का जैसे राम के अपेक्षा किए थे सीता
मैं भ्रमित हूँ, मैं भ्रमित हूँ, मैं भ्रमित हूँ
सच में क्या मैं एक इंसान हूँ।