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Yuvraj Gupta

Tragedy

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Yuvraj Gupta

Tragedy

ख़लिश

ख़लिश

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आज ज़ख्म मिले हैं उससे 

जो रखता था कभी मरहम 

मेरे घावों पर


साथ उसका था जैसे

मेरा आसमान खुल गया


आज दर्द मिला है इतना 

की नींद तक नहीं आती 

मेरे ख्वाबों पर


दिल तो टूटना ही था 

सो टूट गया 

गया तो गया, मेरी सांसें भी ले जाता                 

ऐसा जीना भी क्या जीना                       

जो क़ाबू ही नहीं है                           

मेरा खुद मुझ पर 


रातों से तेरा ज़िक्र ना हो                        

तो मेरा सवेरा नहीं होता 


अब तो वो रातें भी नहीं आतीं              

शायद ग़ुम हैं कहीं,                             

तेरी तलाश पर


कहा था दिल ने,

'मत निकल इस राह पर, तू खुद से रूठ जायेगा' 

मगर कशिश थी तेरी इतनी, कि मैं सब भूल गया 


आज लगता है... यार! रूठ तो गया हूँ 

लेकिन खुद से नहीं, इस ज़माने से 

हाँ... इस ज़माने से 


यही तो वो लोग हैं 

जो प्यार दिखाकर नफऱत सिखाते हैं

रौशनी से छीनकर 

हवाले अंधेरों के कर जाते हैं 


ज़िंदा हूँ आज भी 

क्यूंकि 'जान मेरी' 

आख़िरी निशानी है तेरी 


आ जाओ न ऐ बादलों 

ले जाओ वहां किसी बहाने से 

जहाँ मेरा यार रहता है 


यहाँ कुछ भी नहीं अब 

सिवाय उनकी नफ़रत के 


इनसे क्या करूँ उम्मीद मोहब्बत की 

जो प्रेम कहानियाँ सजाते हैं 

प्यार करने वालों की मौत पर


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