ख़ामोश लफ्ज़
ख़ामोश लफ्ज़
छलके हुए अश्रु से सवाल पूछ लो
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का हाल पूछ लों
एक वफा यकीन के काबिल नहीं लगे
हर दुआ में सब्र का मलाल पूछ लो
लोगों के हुजूम में गुमशुदगी मिले
आरजू एहसास में जब गुदगुदी मिले
थोड़ा सा ठहरों जरा कमाल पूछ लो
दिल के धड़कनों की गहरी चाल पूछ लो
छलके हुए...
आइना जब टूटकर दर्पण दिखाई दे
शोर में जब प्रीत के बस स्वर सुनाई दे
हो रहा है भाव क्यों विकराल पूछ लो
होठ हों ख़ामोश तो कपाल पूछ लो
छलके हुए...
मंजिलों में जब कभी हों रास्ते रुसवा
ख्वाबों की दहलीज की जब नींव हो तबाह
क्यों हुई बदहाल सालों साल पूछ लो
जिक्र में अपने मेरा ख्याल पूछ लो
छलके हुए...