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Vihaan Srivastava

Others

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Vihaan Srivastava

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साजिश

साजिश

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धोखेबाजी, छल कपट व षडयंत्रो, मे तेज है

झूठी निंदा, सूनेपन मे, ही बनाती सेज है।

हर सराफत रौंद देती, सत्य को भी मारती

साजिशे होती जहा, ददॆ दुख लबरेज है


सामने मीठी ही रहती, घाव भीतर देती है।

छुप छुपा कर काम करती, साँस भी हर लेती है।

व्यक्ति को अनजान रखकर, जिस्म को सुलगा रही

साजिशो ने ही सदा, खुशिया सभी की रेती है।


डर, असुविधा और घृणा का, ही सबब बनती रही।

कुविचारो और कुकृत्यो मे, ही जब ठनती रही

आस को देकर तसल्ली, है सदा मुकर रही

असत्यता की ओढ मे, क्रूरता तनती रही।



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