इज्जत ख़ातिर ईश
इज्जत ख़ातिर ईश
राजा के घर जन्म हैं लेते, इज्जत ख़ातिर ईश
साधु भी है वही ठहरता, जहां तो झुका शीश
गुरुजन भी सम्मान में देते, भर भर कर आशीष
बेइज्जती में न देवता रुकते, न रुकते गिरीश
आंखों में आंसू भर लो या तो लो सारे पाप
ईश्वर को बस दिखा सदा हैं कितने सच्चे आप।