STORYMIRROR

Vihaan Srivastava

Abstract

4  

Vihaan Srivastava

Abstract

नींद

नींद

1 min
333

हसरत दबे पाव सुस्की लगाती

खुद की तमन्ना कभी कह न पाती

तब सिफॆ बिस्तर के कोने ही दिखते

दिन मे भी नीदें भर-भर समाती 


ख्वाबों में सच्ची है तस्वीर इनकी

मन को सुकूॅ देना तकदीर इनकी

आलस मे हरदम होती पीर इनकी

सोचो मे बाॅधे है जंजीर इनकी।।


तन को तसल्ली दे मन को दे राहत 

झूठी सी दुनिया मे हसरत को चाहत

जो इसमें रम जाते उनमे क्या आहत 

दुःख भरे जीवन में इसी से शहंशाहत।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract