इज्जत ख़ातिर ईश
इज्जत ख़ातिर ईश
राजा के घर जन्म हैं लेते ,इज्जत ख़ातिर ईश
साधु भी है वही ठहरता, जहां तो झुकता शीश
गुरुजन भी सम्मान में देते ,भर भर के आशीष
बेइज्जती में न देवता रुकते, न रुकते गिरीश ।।
आंखों में आसूं भर लो ,या धो लो सारे पाप
ईश्वर को बस यही दिखे, हैं कितने सच्चे आप
रूह नही छिप सकती है, पोत लो चाहे ग्रीस
राजा के घर जन्म है लेतें , इज्जत ख़ातिर ईश ।।
मन में छल व कपट रवां, क्यो छिड़क रहे हो भांग
अव्वल है वो लीलाओं में, समझे तेरे स्वांग
पता नही चढावों में, अभी भरोगो कितनी फीस
राजा के घर जन्म है लेतें, इज्जत ख़ातिर ईश।।
दोगलों और ढोंगी संग हरगिज़ ,नही टिकते भगवान
स्वार्थ सिद्धि में रहना मत, तू है एक इंसान
सच्चाई के दम से ही ,नतमस्तक है रवीश
राजा के घर जन्म है है लेते, इज्जत ख़ातिर ईश।।
ईश्वर भी तेरी फ़ितरत में ,हो जाएगा मौन
जब तू खुद को बनाकर, पूछेगा मै आखिर कौन
तुझको ही फिर देखेगा वो, चार हों या चालीस
राजा के घर जन्म है लेते, इज्जत ख़ातिर ईश ।।
भक्ति और भाव में ,ईश्वर का न दिखता अंश
रोने और तड़पनें में ,तू ले डूबेगा वंश
शौर्यवान सशक्त से ही, अब मिलते है जगदीश
राजा के घर जन्म है लेते, इज्जत ख़ातिर ईश।।