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Kunda Shamkuwar

Abstract

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Kunda Shamkuwar

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औरत से डरता आदमी

औरत से डरता आदमी

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पहले आदमी ने औरत को मीठी मीठी बातों से बहलाया

औरत अपना वजूद खोकर देवी बनने में जुट गयीं


फिर वह उसकी सुंदरता की तारीफें करने लगा

औरत सुंदरता बढ़ाने के लिए मेक अप करने में जुट गयी


फिर आदमी मातृ शक्ति की बातें करने लगा

औरत फिर घर परिवार और बच्चों के लालन पालन में बंध गयी


आदमी दुनिया के अनजान खतरों की बातें करने लगा

महफूज रहने के नाम पर औरत खुद में सिमट गयी


सदियों से आदमी के इन ढकोसलों को समझ कर

औरत ने पढ़ने लिखने की चाहत और अधिकार की मांग की


औरतों को तालीम के पंख मिले और अब वह उड़ने लगी

आदम जात ने औरत की उड़ान को नजरअंदाज किया


औरत छोटी मोटी नौकरी के लिए घर के बाहर निकलने लगी

आदमी को अपने वजूद पर खतरा मंडराता दिखने लगा


औरत ने आसमान में आगे जाकर चाँद को छूना चाहा

आदमी के साथ साथ औरत भी अब बोर्ड रूम में बैठने लगी


बोर्ड रूम में औरत के कॉन्फिडेंस से आदमी अब डरने लगा है

मुखौटे में छिपा चेहरा और उस के नाखून दिखने लगे है


आदमी अब औरत के सवालों और तर्कों का जवाब नहीं दे पा रहा है

आजकल नुकीले नाखूनों से वह औरत के पंखों को नोचने लगा है...


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