कागज़ पर उतरता आक्रोश
कागज़ पर उतरता आक्रोश
भावों की कचहरी में
शब्दों के गवाह बना
कलम से सिद्ध करते दोष
और फिर हो जाते खामोश
कागज़ पर उतरता आक्रोश।
मोमबत्तियाँ जल जाती हर बार
जुलूस भी निकाल लिये जाते
पर वासना से उत्पन्न
गंदी नाली के कीड़ों में
अब कहाँ बचा है होश
कागज़ पर उतरता आक्रोश।
बालिका संरक्षण गृह में
ही फल फूल रहे
सभी तरह के धंधे
मासूम कहाँ है सुरक्षित
मजबूरी में करती जिस्म फरोश
कागज़ पर उतरता आक्रोश।
प्याज़ निकाल रहा आँसू
गोड़से पर चल रही राजनीति
बिकने के लिये तैयार बैठे
ये सफ़ेदपोश
कागज़ पर उतरता आक्रोश।
सनद रहे
हम भारत की संतान हैं
ये जन जन का आक्रोश
सदैव क्षणिक न रह पायेगा
उठ खड़ा होगा
अपने अधिकार के लिए
करना होगा इनको खामोश,
कागज़ पर उतरता आक्रोश।
