कुछ भी तो कहा ना गया
कुछ भी तो कहा ना गया
बात चल पड़ी महफ़िल में कयामत की
तो फिर हमसे भी यारो रहा ना गया
अश्क लरजते रहे आँखों से रात भर
किसी से कुछ भी तो कहा ना गया
जब जाम छलकने लगे महफ़िल में
हमसे एक जाम भी पिया ना गया
नजर आ गया तेरा चेहरा जाम में
दो नशों को एक साथ पिया न गया
जब सुनाने लगे लोग चर्चे अपने माशूक के
तो फिर हम में भी सब्र ना रह गया
याद आ ही गया वो बेवफा मुझको
बस उसी को अपना खुदा कह गया
जब महफ़िल पहुॅंच गई अपने मुकाम पर
तो खाली बोतलों का एक ढेर रह गया
लोग निकल गए हँसते मुस्कुराते हूए
और मैं किसी के इंतजार में रह गया