सूना आंगन
सूना आंगन
अनकहा सब अनसुना सा क्यों है
मेरी माँ तेरा आंगन सूना सा क्यों है
नहीं सूना तो नहीं दिखता
कोई लेटा सा है शायद
अरे, ये तो मुझ सा है कोई
मेरा ही चेहरा है शायद
बता के तू कुछ बोलती क्यों नहीं
तेरी चुप्पी ये आन्सू कुछ तोड़ती क्यों नहीं
ये घर में इतनी चीखे फ़िर भी नीरव है
समझ गयी माँ ये तो मेरा ही शव है
आज यहाँ ऊपर सब खुशनुमा सा क्यों है
मेरी माँ तेरा आंगन सूना सा क्यों है
दो पल को बस बाहर गयी मैं
भैया ने एक पुकारा फ़िर
और प्यार से खेल खिलौने दे
अपनी बातों में उतारा फ़िर
मैं उनकी गोद में बैठ गयी
छुना उन्होंने शुरू किया
फ़िर काटा दानव की तरह
कपड़े कुतरना शुरू किया
बता मेरी रज़ा है क्या और सब नसूना सा क्यों है
मेरी माँ तेरा आंगन सूना सा क्यों है
फ़िर उसके बाद ही चीखी मैं
चिल्लाई आवाज़ भी ना निगली
उसने ना जाने क्या क्या किया
क्या थी मुझसे यू नाराज़गी
हैवान लगा नहीं था मुझको
शायद वो इंसान ना था
बेहद रो कर मैंने गुहार की
साथ मेरे भगवान ना था
आज पर हर अश्क दोगुना सा क्यों है
मेरी माँ तेरा आंगन सूना सा क्यों है।
