ऐसे गरीब पलते हैं
ऐसे गरीब पलते हैं
सड़कों के किनारों पे
गमगीन नज़ारों पे
शहरों में मंदिरों में
भीखों के सहारों पे
गहरी तपिश में जलते हैं,
इस तरह गरीब पलते हैं।
ऊंचे अफ़सरों के
आलीशां दफ़्तरों पे
चमकाए हाथों से ही
वो जूते दूसरों के
नंगे पैरों पर ही चलते हैं,
इस तरह गरीब पलते हैं।
सँभलते और गिरते हैं
ठोकर सी पत्थरों पे
कचरे सा कोई शायद
टीले सा समंदरो पे
सुबह में शाम ढलते हैं
इस तरह गरीब पलते हैं।
भुखमरी प्रकोपित
कुछ रहते हैं घरों में
सो जाते भूख में ही
बस मरते हैं खबरों में
हुनर भरे फ़िर भी केवल हाथ मलते हैं,
इस तरह गरीब पलते हैं।
