कुछ नहीं
कुछ नहीं


वो पूछी, 'तुम्हें क्या हो गया है ?',
मैं बस दो शब्द कह पाया, 'कुछ नहीं !'
उसकी आँखों में, कुछ अलग बात है,
उठ जाये तो दिन है, झुक जाये तो रात है !
गुस्सा में क़यामत है, और शरमाये तो करामात है,
दो आँखों में हज़ारों अदाएं, और सबमे अलग बात है !
वो पूछी, 'क्या देख रहे हो मेरी आँखों में',
मैं बस इतना ही कह पाया, 'कुछ नहीं !'
उसकी मुस्कुराहट में, इक अलग अंदाज़ है,
वो हल्की हँसे या खुलके हँसे, सब करते मेरे दिल पे राज हैं !
चाह के भी नज़रें ना हटे उसके होंठों से, जाने क्या राज़ है,
उसकी मुस्कुराहट की तारीफ़ में, कम पड़ रहे मेरे अल्फ़ाज़ हैं !
वो पूछी, 'क्या देख रहे हो ऐसे मेरे चेहरे पर',
अब भी मैं इतना ही कह पाया, 'कुछ नहीं !'
उसके जुल्फों का अलग ही फ़साना है,
बंद जुल्फों में उसके, बंद कोई तराना है !
खुली जुल्फों की तारीफ में, दो वाक़्य कम पड़ेंगे,
उसके लिए तो, इक नयी कविता बनाना है !
वो पूछी, 'क्या
देख रहे हो मेरे सर पर',
अब भी बस यही कह पाया, 'कुछ नहीं !'
उसके बातों में भी, कुछ बात है,
हर बात में, इक नयी सौगात है!
रूठे, मन जाये, प्यार से बोले या चिल्लाये,
महसूस करो तो, हर बात में सौ बात है !
वो पूछी, 'कुछ जवाब क्यों नहीं दे रहे हो',
फिर से बस यही कह पाया, 'कुछ नहीं !'
उस पगली लड़की में ही, कुछ तो अलग नशा है,
उसकी आँखों में, होठों में, जुल्फों में और बातों में नशा है !
और क्या क्या लिखें, उसकी तारीफ में,
उसकी तो हर इक अदा और हर इक बात में नशा है !
वो पूछी, 'बिना पीये क्यों मदहोश हुए जा रहे हो',
मैं अब भी बस यही कह पाया, 'कुछ नहीं !'
वो कब जानेगी, कि मुझमें भी कुछ बात है,
वो कब मानेगी, कि मुझमें भी कुछ ख़ास है !
सदियाँ गुजर गयी यारों, इक प्यार के इंतज़ार में,
वो कब समझेगी, दो लफ़्ज़ों में छुपे जो जज़्बात है !
अब वो लड़की पूछी, 'क्या हुआ मनोज',
फिर वही दो लफ्ज़ कह पाया, 'कुछ नहीं !'