वो बनकर रूंह....
वो बनकर रूंह....
जो खुश्बू की तरह मेरी,
साँसों में बहती है,
जो सपनो की तरह मेरे,
ख्वाबों में रहती है,
हवाओं संग मिलकर के,
हंसी जो बात कहती है,
हज़ारों ख़ौफ़ होने पर भी,
न मैं धड़कन को रुकने दूँ,
वो बनकर रूंह इस दिल के,
बहुत नज़दीक रहती है।
न साँसें दिल में इतनी,
जितना उसका प्यार रहता है,
न नींदें नैन में इतनी,
जो उसका ख़्वाब रहता है,
ये जां भी इश्क़ को उसके,
बहुत महसूस करती है,
वो बनकर रूह इस दिल के
बहुत नज़दीक रहती है।