...कुछ और अब सोचना नहीं।
...कुछ और अब सोचना नहीं।
मंज़र कायनात के अब सोचना नहीं,
तेरी आँखों से हटकर कुछ देखना नहीं।
है चाँद ईद का, है रात शबनमी,
है सुर्ख सी हवा, है धूप गुनगुनी,
है मखमली फ़लक, हैं अब्र मनचले,
है रेत के मैदां, फूलों के गुलसितें,
हैं देखने को फलसफे लाखों यहाँ मगर,
तेरी रुखसार से हटकर मुझे कुछ देखना नहीं।
मंज़र कायनात के अब सोचना नहीं,
तेरी आँखों से हटकर कुछ देखना नहीं।