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Sameer Faridi

Tragedy

3.8  

Sameer Faridi

Tragedy

बाकी है ....

बाकी है ....

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338


"मेरे आँसुओं का तुझ पे, हिसाब बाकी है,

बुझे चराग़ों में बे बुझा, एक आफ़ताब बाकी है।


कितने कलमें तेरे वादे के लिखे रखें हैं,

कितने वादों की पढ़नी अभी, किताब बाकी है।


ख़ामोश उस नज़र से एक सवाल था किया,

और अनकहा वो तेरा जवाब बाकी है।


सदा दर-बदर रहा, अपना सफर मगर,

ये साँस तेरे दर की मोहताज़ बाकी है।


आह, दर्द, ग़म, तड़फ, अपने हैं हमनवां,

मोहब्बत अभी भी हमसे नाराज़ बाकी है।


एक रात मेरे दिल में कभी तू बिता के देख,

उजड़े वतन में एक शहर, आबाद बाकी है।"


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