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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

स्त्री का रुदन

स्त्री का रुदन

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स्त्री प्राकृतिक है 

प्रकृति स्त्रैण है 

व्यर्थ की छेड़खानी, बार बार का शोषण 

प्रकृति रूठ गयी और कहीं कोई स्त्री रोई होगी 

उसी के सैलाब में तुम बहे, फंसे, मरे और उजड़े 

धरती माता है, स्त्री माँ है, नदियां भी माँ 

और वे सब स्त्री 

इतना मत रुलाओ, इतना मत सताओ कि 

स्त्री के आंसुओं से भर जाये पूरी पृथ्वी 

तुम बाढ़ कहो, प्रलय कहो और कहते रहो ग्लोबल वार्मिंग 

मुझे तो ये स्त्रियों का रुदन लगता है 

तभी तो सागर खारा है, आंसुओं की तरह 

इससे पहले कि रुदन बढ़ता रहे निरंतर 

तुम बस करो अन्यथा सागर का हाहाकार 

कुछ भी न बचने देगा 

स्त्री का हृदय सागर जो है।


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