खिलौना
खिलौना
मैं ज़िंदगी के आईने से आँखें चुराते हुए
दिल की तंग गलियों में क़ैद
मायूस ख्वाहिशों के सवालों से परेशाँ हूँ
मैं परेशाँ हूँ अपने ही लहू की आग से
जो तिल तिल मुझे जला रही है
सता रही है
परेशाँ हूँ उन फूलों कलियों को जिन्हें मैंने चूमा था
जिसके कांटे अब मेरी रूह में उतर गये है
कुदरत की रहमतों से बेनियाज़
एक पत्थर के शाहकार के सिवा अब में कुछ नहीं हूँ
जो सवाल मेरे हमराह बिखरे पड़े हैं
जिनके जवाब तुम्हें सकते में डाल सकते हैं
मत पूछो
ना पूछो मुझसे में क्या हूँ
में वो राह हूँ
जिस पे मुसाफ़िर थक हार के लौट सकता है
मैं वो बाग़ हूँ जिससे बहारों को कोई रंजिश है
एक दरिया हूँ जो बस एक भंवर है
एक मुद्दत से बंद वीरान महल हूँ
जिसमें मेरी रूह कबसे चीख रही है
मैं एक खिलौना था खिलौना ही रह गया
मुझसे खेलने वाले बचपन अब जवाँ हो गये
एक तस्वीर था
जो मुकम्मल ना हो सकी
एक ख्वाब हूँ कोई खौफनाक सा
जिसे देखने से आँखें नीली पड़ जाए
और सबसे छुपा हुआ राज हूँ
जिस्म पे आईना सिफ़्त चमड़ी को लपेटे
मुझे देखने वाले को मैं नजर नहीं आ सकता
जिस तरहा जो देखता है
मैं वैसा नज़र आता हूं
मैं दुनिया के रंगो में रंगा नज़र आता हूं।