कीचड़ हो तुम
कीचड़ हो तुम
कोई चाहे भी तो साथ न दे पाए
ऐसा दूर्भाग्य जो मिले,
रुक भी जाएं कदम तेरा, जीतना भी क्यों,
अकेले ही चलना है तुम्हें।
कीचड़ में जो तुम लिया है जन्म,
आसान नहीं बाहर निकल पाना,
चाहे कितना खुशबू लगे तुम्हें,
'कीचड़ हो तुम' बोले ज़माना।
इंसान यहां रंग-बिरंगे देखो,
ऊंच-नीच, अमीर-गरीब,
एक दूजे का स्थान है अलग, जहां
कभी न होते दो दिल करीब।
इस जगह में कदर न मिले कभी
दोस्ती हो, चाहे प्यार,
बन भी जाएं बंधन कोई यहां,
बेशक मिलेगा तिरस्कार।
कभी न होगा जो मिलन हमारे
कीचड़ में जो जन्म तुम्हारा
मैं हूं ऊंचे, नीचे न देखें कहीं,
नाता न बने हमारा।
लाख कोशिशे कर लो फिर भी, कभी
न मिले दिल उसका मेरा,
किस्मत ने ही मुझे दे दिया धोखा
तो फिर क्यों ढूंढे सहारा?
