तुझ बिन सूना लगे ये जहां
तुझ बिन सूना लगे ये जहां
क्यों आई वो घड़ी, हमारे बिछड़ने की
किस्मत के आगे क्यों मजबूर हम हो जाते हैं
कभी वक्त धोखा देता कभी दुश्मन बनती दुनिया।
ख़बर भी नहीं देती हवाएं तेरे आने की
मोहब्बत करने वाले यूँ रास्ता कहाँ बदलते हैं
किन राहों में ढूंढूं तुझे, कुछ तो बता, तू है कहाँ।
वो रुनझुन सी आवाज़ तेरे पायल की
आज भी कानों में आकर, रस घोल जाते हैं
अब लौट भी आ कि तुझ बिन सूना लगे ये जहाँ।
वो गलियाँ वो दरख़्त़ों पे झूले आज भी
हमारी मुलाकातों के अहसास बयां करते हैं
देखूँ तो हर जगह मिल ही जाते हैं इश्क़ के निशां।
एक आदत सी हो गई थी मुझे तेरे साथ की
अब तो लफ्ज़ भी मेरे खामोश ही रहा करते हैं
तेरे साथ से ही तो जाना मैंने क्या होती हैं खुशियाँ।
इन आँखों में कैद झलक तेरी मुस्कुराहट की
एक पल के लिए ही सही, मुस्कान ले ही आते हैं
वरना इन होंठों को मुस्कुराने की आदत रही कहाँ।
जी रहा हूँ बस ओढ़कर चादर तेरी यादों की
जो सुकून के कुछ पल, मेरी ज़िन्दगी को देते हैं
तेरा तख़य्यूल, तेरा एहसास ही अब तो है मेरा जहां।
काश! लौटा पाता तस्वीर उन बीते पलों की
जो एक पल भी, आँखों से ओझल नहीं होते हैं
लौट आ कि लौटाना चाहता हूँ तुझे तेरी वो खुशियाँ।

