में एक औरत हूँ कोई बिकाऊ नहीं
में एक औरत हूँ कोई बिकाऊ नहीं
हां मैं एक औरत हूँ,
कोई बिकाऊ नहीं,
जहा नोच नोच कर,
मुझे खाया जाता,
जब चाहा तब फेंका जाता,
क्यु हम इतने मजबूर हैं,
क्यु आज भी कई जगह,
यही दस्तूर है,
हम काज की नारी है,
जो चाहे वो कर सकतीं हैं,
नारी है हम कोई चीज नहीं,
इस संसार की है शक्ति हम,
कोई बिकाऊ नहीं,
कभी तो खुद को हमारी जगह,
रखकर देखो खुद को,
हम किसकी मां,बहन, बेटी,
है, एक बार जरा सोचो ये,
जो हम पर बीत ती कभी,
क्या उसमें आपके परिवार
का तो कोई कभी तो था नहीं।