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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

काया नहीं तो छाया नहीं

काया नहीं तो छाया नहीं

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शादी होती है दूल्हा की और दुल्हन की 

लेकिन विदा होती है दुल्हन 

क्योंकि दुल्हन स्त्री है. 

भागते हैं घर से लड़के और लड़की 

कहता है समाज, लड़की भाग गई 

कोई नहीं कहता, लड़का भाग गया 

वासना में बंधते है स्त्री और पुरुष 

चरित्र हीन कहलाती है स्त्री 

और पुरुष ज्यादा से ज्यादा 

चलो घर आ गया वापिस 

और स्त्री न ये घर उसका 

न वो घर उसका 

पराधीन जिसने स्वीकारा 

वो कृपा, दया निधान 

समाज जो बनता है, बढ़ता है 

वही समाज जो पैदा होता है स्त्री से 

स्त्री को देता है नाम, जाति, चरित्र 

बलात्कार भी, डायन, चुड़ैल, अभागिन भी 

पुरुष तुम मात्र छाया हो 

काया पर इतना जुल्म मत करो 

मत भूलो काया नहीं तो छाया नहीं. 


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