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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

4  

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

कमी न थी

कमी न थी

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कहीं कोई कमी न थी 

बस मेरे घर रोशनी न थी 

हर घर में जलसे, हर घर में बारात 

मेरे घर पर न जाने किसकी नजर थी 

जब भी निकली, आह निकली 

हाँ आह, कराह और अरथियों की कमी न थी. 

उम्मीदों का एक दिया मैंने भी जलाया था जैसे तैसे 

जला और फडफडाकर बुझ गया 

नादां था इतना भी न समझा 

कि उम्मीदों से नहीं, दिए तेल से जलते हैं 

मेरे घर बाती थी, दिया था 

बस कमी थी तो तेल की 

मैं रोशनी देता रहा, बांटता रहा उजास 

लौटा खुशी खुशी अपने घर 

तो देखा अंधेरों की कमी न थी. 


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