औकात पूछता हूं
औकात पूछता हूं
आज मै पौधों से एक बात पूछता हूं,
उनकी नजरों में अपनी औकात पूछता हूं।
कैसे सह लेते हो चुप होकर,
ये ऐसे हालात पूछता हूं,
उनकी नजरों में अपनी औकात पूछता हूं।
जल रही हरियाली,
मिट रही खुशहाली।
कितनी हीन है तुम्हारी आत्मा,
अपनी कौम से ये बात पूछता हूं।
इंसा की मनमर्जी का ,
चुभता हुआ एहसास पूछता हूं,
उनकी नजरों में अपनी औकात पूछता हूं।
नाम काम विज्ञान कमाया,
फिर भी है अकेलेपन का साया।
क्या बची है कोई आश,
ये सवालात पूछता हूं।
आज अपनी नजरों में भी,
अपनी ही औकात पूछता हूं।
आज मैं पौधों से एक बात ......।
