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Nishant Singh

Abstract

3  

Nishant Singh

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कही अनकही

कही अनकही

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जो कही अनकही सी है,

उसे कहे कौन।

जो डर कुछ खोने का है,

उसे सहे कौन।


प्रेम रस तेरे मेरे पास है,

कविता में रंग भरे कौन।

एक दूजे के सम्मान की चिंता,

अपनेपन में लड़े कौन।


अजनबियों से अड़े हुए हैं,

पहले आगे बढ़े कौन।

जो दरिया हमें करीब लाए,

उसमे पहले बहे कौन।


मन कि मन में ही पढ़ ले वो,

ये सोच कर हम रहे मौन।


जो कही अनकही सी है.....

 



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