कैसी दी है ?रब तूने हो आज दुआई
कैसी दी है ?रब तूने हो आज दुआई
कैसी दी है ?
रब तूने हो आज दुआई,
कर दी तुझे पीर - पराई चौखट से हो मेरे !!
हथेली पर मेरी लाडो - प्यारी पली - बढ़ी !
फूलों की पंखुड़ी हो मेरी....
बंध गयी हो - बन्धन में
बंध गयी हो
सात फेरों की माला में,
कैसा यह पल आज बनके बौनी घड़ी में हो समाया
रस्म यह रिवाज़ बाबुल का निभाने..
देखो सिरहाने लग जा रही दुराली हो मेरी !!
कैसी दी है ?
रब तूने हो आज दुआई,
कर दी तुझे पीर - पराई चौखट से हो मेरे !!
आंगन में खेलती कल की झमकुड़ी मेरी, आज सजी-धवेळी बनके खड़ी दुल्हन !
दो चोटली बांध के आंगन में करती धमा-चौकड़ी " पा-पा " कहती - आज वो हमराही बनने हो चली,
देखो मेरी नाजो की कच्ची कली आज बनके सेतु हाथ पति का थाम के जिम्मा दुनियादारी का निभाने हो चली !!
कैसी दी है ?
रब तूने हो आज दुआई,
कर दी पीर - पराई चौखट से हो मेरे !!
वंश की चाह में भी-धिक लाड़ लड़ाए अनुज पर !
जब भी चोट लगी मुझे आंखों में आँसू तनुजा के हो आए,
अजनबियों से डरती कली मेरी आज वो संस्कारो से लिपटी अजनबी का हाथ थामने हो चली..
माँ की लाडो - पापा की दुराली आँखों में लिए आंसू भावी सपनो को सजाने को हो चली !!
कैसी दी है ?
रब तूने हो आज दुआई,
कर दी तुझे पीर - पराई चौखट से हो मेरे !!
माँ की ओढ़नी ओढ के आंगन में नवेली बनके खेलती..
लाल जोड़े में सजी-धवेळी लगा के टिका दुल्हन बनके आज वो खड़ी !
विदा की घड़ी हो आज आयी...
छोड़ के दामन माँ का - चिर के कलेजा वो बापू का अब सब छोड़ चली !!
कैसी दी है ?
रब तूने हो आज दुआई,
कर दी तुझे पीर - पराई चौखट से हो मेरे !!