मोहब्बत पढ़ता हूँ
मोहब्बत पढ़ता हूँ
वो जो, पहली मुलाकात में, होकर भी, नहीं हुआ था,
उसे क्या नाम दोगी तुम? मैं तो उसे उल्फ़त कहता हूँ।
तुम चाहो तो दोस्ती कह लो, या गुमाँ कह सकती हो।
चाहे जो भी नाम दे दो, जो चाहो कहो अपने लब से,
तेरी आँखों में, उसे आज भी, मोहब्बत ही पढ़ता हूँ।
वो जो, पहली मुलाकात में, होकर भी, नहीं हुआ था…..
तुझे महसूस करके, खुद के होने का, एहसास हुआ था,
तुझे पास पाकर, दिल को महफ़िल पर, विस्वास हुआ था,
तुम चाहो तो, दीवाना कह लो, या पागल कह सकती हो।
उस हरारत को, जो भी कहो, जो चाहे तुम समझ लो,
तेरी आँखों में, आज भी मेरी सी वो, हसरत पढ़ता हूँ।
वो जो, पहली मुलाकात में, होकर भी, नहीं हुआ था…..
तेरी आँखों की शर्म से जब, दिल ज़रा, बेशर्म सा हुआ था,
तेरे साँस की खुशबू से जब, पंकज में, इश्क सा घुला था,
तुम चाहो तो, बेतकल्लुफ कह लो, या बेबाक कह सकती हो।
उस बेकसी को, जो भी कहो, जो चाहे तुम इल्ज़ाम दो,
तेरी आँखों में, आज भी मेरी सी वो, शिद्दत पढ़ता हूँ।
वो जो, पहली मुलाकात में, होकर भी, नहीं हुआ था।