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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

"काम बहाने"

"काम बहाने"

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जिन्हें न आते है, काम दो आने

वही लोग यहां बनाते है, बहाने

जो आलस्य के है, पुराने ज़माने

वो क्या करेंगे श्रम सोलह आने

जिसमें खाते है, उसे ही देते ताने

ऐसे एहसान फरामोश भी है, गाने

जो वक्त-वक्त पर बताते, नजराने

हम आये, स्वयं घर मे आग लगाने

जो हर काम में करे, आनाकानी

वो लोग होते है, ज्यादा ही सयाने

कितने दुष्ट, स्वार्थी, इन्हें पहचाने

न तो घर पर ही लगा देंगे, ठिकाने

तोड़ देते, अक्सर वो, वो ही आईने

जिन्होंने दिये इन्हें खाने के दाने

इन्हें, दीमक की लकड़ी तरह, जाने

दूर करो, या दूर रहो, इनसे यानी

गर लिखना है, सफलता के पाने

कामचोरों से दूर रहना भी जाने

जैसी संगत, वैसे होते है, नजराने

हंस संगत से अच्छी होगी दुकाने

जो काम करते है, अलग इतराने

वो ही लिखते है, जिंदगी के गाने

उन्हें क्या डुबायेंगे, साखी ये, ज़माने

जो खुद भीतर समेटे, दरिया मैदाने

वो आगे बढ़ेंगे, और पहुंचेंगे आसमाने

जो जिंदगी नभ में, खुद को बाज माने। 



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